शुक्रवार, 8 अगस्त 2008

जो पै तुलसी न गावतो.

भारत ह्रदय ...भारती कंठ गोसाईं तुलसीदास जी के प्रति
बेनी कवि का उदगार मन को छू गया
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बेदमत सोधि,सोधि-सोधि कै पुरान सबै
संत और असंतन को भेद को बतावतो।
कपटी कुराही क्रूर कलि के कुचाली जीव
कौन राम नामहु की चर्चा चालवतो।।
बेनी कबि कहै मानो-मानो यह प्रतीति यह
पाहन-हिए मैं कौन प्रेम उपजावतो।
भारी भवसागर उतारतो कवन पार
जो पै यह रामायण तुलसी न गावतो।।
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गुरुवार, 7 अगस्त 2008

कविता लसी पा तुलसी की कला.

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कवि कुल किरीट गोस्वामी तुलसीदास जी की जयन्ती पर
उनके दिव्य योगदान को नमन करते हुए स्मरण स्वरूप ही
यहाँ उनकी प्रमुख कृतियों का सारभूत परिचय प्रस्तुत है.
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१ रामलला नहछू
बारात के पहले लग्न मंडप में माँ, वर को नहला धुलाकर
गोद में लेकर बैठती है और नाइन पैर के नखों को महावर
के रंग से रंगती है, इस रीत को नहछू कहते हैं। सोहर छंद में
लिखी गई इस रचना की भाषा पूर्वी अवधी है।

वैराग्य-संदीपनी
दोहों में लिखी गई इस रचना में सदाचार, सत्संग, वैराग्य
इत्यादि के माध्यम से भक्ति का मार्ग बताया गया है।भाषा
अवधी है।

बरवै रामायण
सात कांडों में विभाजित यह रचना राम कथा से संबंधित है।
बरवै छंद मुक्तक रूप में प्रयुक्त है। भाषा अवधी है।

पार्वती-मंगल
जगदम्बा पार्वती की तपस्या, शिव-पार्वती विवाह,बारात,विदाई
इत्यादि प्रसंगों का सुंदर वर्णन। मंगल और हरि गीतिका छंदों
का प्रयोग किया गया है। कथा, कुमार सम्भव पर आधारित है।
भाषा पूरबी अवधी है।

५ जानकी-मंगल
जानकी जी के विवाह का वर्णन है। स्वयंवर प्रसंग से अयोध्या
में आनंदोत्सव तक विस्तृत है। वाल्मीकि रामायण का प्रभाव।
इसकी भाषा भी अवधी है।

६ रामाज्ञा-प्रश्न
इसमें सात सर्ग हैं। प्रत्येक सर्ग में सात सप्तक हैं। प्रत्येक सप्तक
में सात दोहे हैं। प्रारंभ में शकुन -विचार विधि का उल्लेख है।
भाषा अवधी है।

७ दोहावली
शुद्ध मुक्तक रचना। समाज,धर्म,व्यक्ति,भक्ति,राजनीति,ज्योतिष,
आचार-व्यवहार,राज्य-आदर्श इत्यादि विषयों पर दोहे रचे गए हैं।
भाषा अवधी है।

८ कवितावली
इसमें कवित्त,घनाक्षरी,छप्पय,सवैया आदि छंदों का समावेश है।
सात कांड है। ब्रज भाषा है।

९ हनुमान बाहुक
कवितावली का एक अंश। बाहु पीड़ा और अन्य पीड़ाओं का
निवेदन हनुमान जी तथा अन्य देवताओं से किया गया है। भाषा
अवधी है।

१० कृष्ण-गीतावली
श्री कृष्ण के जीवन से संबंधित पद हैं। भाषा ब्रज है।

११ विनय-पत्रिका
राग-रागिनियों पर आधारित गीति काव्य है। भाषा ब्रज है।

१२ रामचरितमानस
सात कांडों में विभक्त है। दोहे,चौपाई,सोरठा तथा विभिन्न
मात्रिक एवं वार्णिक छंदों का उपयोग किया गया है। भाषा
भाषा पूर्वी-पंचोही अवधी.
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मंगलवार, 5 अगस्त 2008

पत्रकार का दायित्व / डा.शंकर दयाल शर्मा

एक सच्चे पत्रकार का काम केवल घटनाओं का हू-ब-हू ज़िक्र भर कर देना नहीं है, बल्कि उस घटना को इस रूप में विश्लेषित करना भी है, जिससे समाज में उच्च मानवीय गुणों का विकास हो सके। यहीं पर अच्छे को प्रोत्साहित करने तथा बुरे को निरुत्साहित करने की बात आती है। आप स्वयं को महज़ एक दर्शक की भूमिका तक सीमित नहीं रख सकते। आप समाज के एक महत्वपूर्ण अंग हैं। इस नाते आप पर एक महत्वपूर्ण दायित्व भी है। यह दायित्व है- लोगों की चेतना को समाज के हित में जाग्रत करना। बापू ने पत्रकार के कार्य की चर्चा करते हुए कहा था, "पत्रकारिता का सही कार्य लोक चेतना को शिक्षित करना है, न कि उसे वांछित-अवांछित प्रभावों से भर देना। इसलिए पत्रकारों को स्वविवेक का उपयोग करना पड़ता है कि वे क्या रिपोर्ट करें और कब रिपोर्ट करें। इस प्रकार पत्रकार केवल सत्य तक सीमित नहीं रह सकता। पत्रकारिता 'घटनाओं का बुद्धिमत्तापूर्ण पूर्वानुमान' करने की कला बन गई है।" मेरी समझ में यहाँ जो 'बुद्धिमत्तापूर्ण' शब्द का प्रयोग किया गया है, इसका आधार यही है कि कौन-सी बात समाज के हित में है, और कौन-सी बात समाज के लिए अहितकर है। मैं इसे किसी भी बात को कसने की सर्वोत्तम कसौटी मानता हूँ। यही कसौटी पत्रकारिता पर भी लागू होती है. =================================================
'चेतना के स्रोत' से साभार

शनिवार, 2 अगस्त 2008

महान हिन्दी सेवी की विरक्ति-भावना / शिवकुमार गोयल


पंडित माखनलाल चतुर्वेदी एक राष्ट्रवादी पत्रकार के साथ-साथ
महान ओजस्वी कवि भी थे। उनकी लिखी कविताओं ने
राष्ट्रीय जागरण अभियान में जान फूँकने में अहम
भूमिका निभाई थी। वे स्वयं स्वाधीनता आन्दोलन में
सक्रिय रहे। सन 1921 में उन्हें राजद्रोह के आरोप में
गिरफ्तार किया गया था।
'एक भारतीय आत्मा' के नाम से रचित उनकी कविताओं
से अनेक राष्ट्रीय नेताओं ने प्रेरणा ली थी। उनकी कविता
'पुष्प की अभिलाषा' की पंक्तियाँ तो देश की युवा पीढ़ी को
प्रेरित करने की अनूठी क्षमता रखती थी।
देश के स्वाधीन होने के बाद राष्ट्रपति डा.राजेन्द्र प्रसाद की
इच्छा थी कि वे मैथिलीशरण गुप्त तथा पंडित बनारसीदास
चतुर्वेदी के साथ-साथ पंडित माखनलाल चतुर्वेदी जी को भी
राज्य सभा का सदस्य मनोनीत करें।
एक दिन खंडवा के कलेक्टर को संदेश पहुँचा कि वे
माखनलाल जी से भेंट कर राज्य सभा की सदस्यता की
स्वीकृति प्राप्त करें। कलेक्टर दादा के निवास-sthan पर पहुँचे
तथा राष्ट्रपति के संदेश से उन्हें अवगत कराया। दादा मुस्कराए और
विनम्रता से बोले ' कलेक्टर साहब, मैंने कभी 'पुष्प की अभिलाषा'
लिखी थी - 'चाह नहीं मैं सुर बाला के गहनों में गूँथा जाऊँ'। उससे आगे
लिखा था, 'माली, मुझे (पुष्प को) तोड़कर उस रास्ते पर फेंक देना
जिससे राष्ट्र वीर गुजरें तथा उनके चरणों का स्पर्श पा सकें।'
'मैं आज भी उसी पुष्प की तरह, राज मुकुट से दूर रहना चाहता हूँ।
मैं किसी भी राजकीय पद की स्वीकृति नहीं दे सकता।
कलेक्टर, वयोवृद्ध सरस्वती साधक की सांसद जैसे पद के प्रति
विरक्ति की भावना को देखकर चकित रह गए।
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'साहित्य अमृत' जुलाई २००७ से साभार