शनिवार, 4 अक्तूबर 2008

चन्द्रसेन विराट के मुक्तक.

मित्रों !
श्री चंद्रसेन विराट मानव मन की उलझन को
स्पष्ट दृष्टि से शब्द देने वाले और विसंगत
दृश्य चित्रों को पूरी संगति के साथ उकेरने वाले
मेरे प्रिय सृजन-शिल्पी हैं। आज नई दुनिया के
तरंग (५ अक्टूबर २००८ ) में उनकी
सद्यः प्रकाशित कृति
'कुछ अंगारे कुछ फुहारें' की
डॉ.कृष्णगोपाल मिश्र द्वारा लिखित समीक्षा पढ़ी।
उसमें कुछ मुक्तक मन को छू गए
आप भी पढ़ लीजिए।
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जो दिखाए थे, ख़्वाब दो हमको
मौन क्यों हो,ज़वाब दो हमको
हम हैं जनता की मांगते हैं तुमसे
पिछला सारा हिसाब दो हमको

ये है वैश्वीकरण की पुरवाई
ये उदारीकरण की उबकाई
आप नाहक ही आँख ढपते हैं
ये खुलापन ? ये सभी नंगाई

प्रेम,उत्सर्ग किया करता है
वर्ग,अपवर्ग किया करता है
प्रेम ही नर को बना नारायण
भूमि को स्वर्ग किया करता है
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