एक सच्चे पत्रकार का काम केवल घटनाओं का हू-ब-हू ज़िक्र भर कर देना नहीं है, बल्कि उस घटना को इस रूप में विश्लेषित करना भी है, जिससे समाज में उच्च मानवीय गुणों का विकास हो सके। यहीं पर अच्छे को प्रोत्साहित करने तथा बुरे को निरुत्साहित करने की बात आती है। आप स्वयं को महज़ एक दर्शक की भूमिका तक सीमित नहीं रख सकते। आप समाज के एक महत्वपूर्ण अंग हैं। इस नाते आप पर एक महत्वपूर्ण दायित्व भी है। यह दायित्व है- लोगों की चेतना को समाज के हित में जाग्रत करना। बापू ने पत्रकार के कार्य की चर्चा करते हुए कहा था, "पत्रकारिता का सही कार्य लोक चेतना को शिक्षित करना है, न कि उसे वांछित-अवांछित प्रभावों से भर देना। इसलिए पत्रकारों को स्वविवेक का उपयोग करना पड़ता है कि वे क्या रिपोर्ट करें और कब रिपोर्ट करें। इस प्रकार पत्रकार केवल सत्य तक सीमित नहीं रह सकता। पत्रकारिता 'घटनाओं का बुद्धिमत्तापूर्ण पूर्वानुमान' करने की कला बन गई है।" मेरी समझ में यहाँ जो 'बुद्धिमत्तापूर्ण' शब्द का प्रयोग किया गया है, इसका आधार यही है कि कौन-सी बात समाज के हित में है, और कौन-सी बात समाज के लिए अहितकर है। मैं इसे किसी भी बात को कसने की सर्वोत्तम कसौटी मानता हूँ। यही कसौटी पत्रकारिता पर भी लागू होती है. =================================================
'चेतना के स्रोत' से साभार
मंगलवार, 5 अगस्त 2008
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