पंडित माखनलाल चतुर्वेदी एक राष्ट्रवादी पत्रकार के साथ-साथ
महान ओजस्वी कवि भी थे। उनकी लिखी कविताओं ने
राष्ट्रीय जागरण अभियान में जान फूँकने में अहम
भूमिका निभाई थी। वे स्वयं स्वाधीनता आन्दोलन में
सक्रिय रहे। सन 1921 में उन्हें राजद्रोह के आरोप में
गिरफ्तार किया गया था।
'एक भारतीय आत्मा' के नाम से रचित उनकी कविताओं
से अनेक राष्ट्रीय नेताओं ने प्रेरणा ली थी। उनकी कविता
'पुष्प की अभिलाषा' की पंक्तियाँ तो देश की युवा पीढ़ी को
प्रेरित करने की अनूठी क्षमता रखती थी।
देश के स्वाधीन होने के बाद राष्ट्रपति डा.राजेन्द्र प्रसाद की
इच्छा थी कि वे मैथिलीशरण गुप्त तथा पंडित बनारसीदास
चतुर्वेदी के साथ-साथ पंडित माखनलाल चतुर्वेदी जी को भी
राज्य सभा का सदस्य मनोनीत करें।
एक दिन खंडवा के कलेक्टर को संदेश पहुँचा कि वे
माखनलाल जी से भेंट कर राज्य सभा की सदस्यता की
स्वीकृति प्राप्त करें। कलेक्टर दादा के निवास-sthan पर पहुँचे
तथा राष्ट्रपति के संदेश से उन्हें अवगत कराया। दादा मुस्कराए और
विनम्रता से बोले ' कलेक्टर साहब, मैंने कभी 'पुष्प की अभिलाषा'
लिखी थी - 'चाह नहीं मैं सुर बाला के गहनों में गूँथा जाऊँ'। उससे आगे
लिखा था, 'माली, मुझे (पुष्प को) तोड़कर उस रास्ते पर फेंक देना
जिससे राष्ट्र वीर गुजरें तथा उनके चरणों का स्पर्श पा सकें।'
'मैं आज भी उसी पुष्प की तरह, राज मुकुट से दूर रहना चाहता हूँ।
मैं किसी भी राजकीय पद की स्वीकृति नहीं दे सकता।
कलेक्टर, वयोवृद्ध सरस्वती साधक की सांसद जैसे पद के प्रति
विरक्ति की भावना को देखकर चकित रह गए।
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'साहित्य अमृत' जुलाई २००७ से साभार
महान ओजस्वी कवि भी थे। उनकी लिखी कविताओं ने
राष्ट्रीय जागरण अभियान में जान फूँकने में अहम
भूमिका निभाई थी। वे स्वयं स्वाधीनता आन्दोलन में
सक्रिय रहे। सन 1921 में उन्हें राजद्रोह के आरोप में
गिरफ्तार किया गया था।
'एक भारतीय आत्मा' के नाम से रचित उनकी कविताओं
से अनेक राष्ट्रीय नेताओं ने प्रेरणा ली थी। उनकी कविता
'पुष्प की अभिलाषा' की पंक्तियाँ तो देश की युवा पीढ़ी को
प्रेरित करने की अनूठी क्षमता रखती थी।
देश के स्वाधीन होने के बाद राष्ट्रपति डा.राजेन्द्र प्रसाद की
इच्छा थी कि वे मैथिलीशरण गुप्त तथा पंडित बनारसीदास
चतुर्वेदी के साथ-साथ पंडित माखनलाल चतुर्वेदी जी को भी
राज्य सभा का सदस्य मनोनीत करें।
एक दिन खंडवा के कलेक्टर को संदेश पहुँचा कि वे
माखनलाल जी से भेंट कर राज्य सभा की सदस्यता की
स्वीकृति प्राप्त करें। कलेक्टर दादा के निवास-sthan पर पहुँचे
तथा राष्ट्रपति के संदेश से उन्हें अवगत कराया। दादा मुस्कराए और
विनम्रता से बोले ' कलेक्टर साहब, मैंने कभी 'पुष्प की अभिलाषा'
लिखी थी - 'चाह नहीं मैं सुर बाला के गहनों में गूँथा जाऊँ'। उससे आगे
लिखा था, 'माली, मुझे (पुष्प को) तोड़कर उस रास्ते पर फेंक देना
जिससे राष्ट्र वीर गुजरें तथा उनके चरणों का स्पर्श पा सकें।'
'मैं आज भी उसी पुष्प की तरह, राज मुकुट से दूर रहना चाहता हूँ।
मैं किसी भी राजकीय पद की स्वीकृति नहीं दे सकता।
कलेक्टर, वयोवृद्ध सरस्वती साधक की सांसद जैसे पद के प्रति
विरक्ति की भावना को देखकर चकित रह गए।
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'साहित्य अमृत' जुलाई २००७ से साभार
2 टिप्पणियां:
दद्दा एक अलग जमाने के हैं, जब सरकारी सम्मान की बजाय आत्मबोध और उत्कृष्टता का महत्व था व्यक्ति में।
वे हमारे आदर्श हैं।
अच्छी जानकारी प्रेषित की है।आभार।
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