मंगलवार, 27 मई 2008

सुभाषित / आचार्य विष्णुकांत शास्त्री

प्रभावित होना और प्रभावित करना जीवंतता का लक्षण है।
कुछ लोग हैं, जो प्रभावित होने को दुर्बलता मानते हैं। मैं ऐसा नहीं मानता।
जो महत् से, साधारण में छिपे असाधारण से प्रभावित नहीं होते,
मैं उन्हें जड़ मानता हूँ। चेतन तो निकट सम्पर्क में आने वालों से
भावात्मक आदान-प्रदान करता हुआ आगे बढ़ता जाता है।
जिस व्यक्ति या परिवेश से अन्तर समृद्ध हुआ हो,
उसे रह-रहकर मन याद करता ही है...करने के लिए विवश है।
जब चारों तरफ़ के कुहरे से व्यक्ति अवसन्न होने लगता है
तब ऐसी यादें मन को ताजगी दे जाती हैं।
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'स्मरण को पाथेय बनने दो' से

1 टिप्पणी:

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

ओह, ऐसे व्यक्ति जो प्रभावित करते हैं - सब ओर हैं, पर मैक्सिमम कंसंट्रेशन पुस्तकों में है उनकी। तभी पुस्तकें अधिकतम ताजगी देती हैं।