मित्रों !
श्री चंद्रसेन विराट मानव मन की उलझन को
स्पष्ट दृष्टि से शब्द देने वाले और विसंगत
दृश्य चित्रों को पूरी संगति के साथ उकेरने वाले
मेरे प्रिय सृजन-शिल्पी हैं। आज नई दुनिया के
तरंग (५ अक्टूबर २००८ ) में उनकी
सद्यः प्रकाशित कृति
'कुछ अंगारे कुछ फुहारें' की
डॉ.कृष्णगोपाल मिश्र द्वारा लिखित समीक्षा पढ़ी।
उसमें कुछ मुक्तक मन को छू गए
आप भी पढ़ लीजिए।
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जो दिखाए थे, ख़्वाब दो हमको
मौन क्यों हो,ज़वाब दो हमको
हम हैं जनता की मांगते हैं तुमसे
पिछला सारा हिसाब दो हमको
ये है वैश्वीकरण की पुरवाई
ये उदारीकरण की उबकाई
आप नाहक ही आँख ढपते हैं
ये खुलापन ? ये सभी नंगाई
प्रेम,उत्सर्ग किया करता है
वर्ग,अपवर्ग किया करता है
प्रेम ही नर को बना नारायण
भूमि को स्वर्ग किया करता है
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शनिवार, 4 अक्टूबर 2008
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9 टिप्पणियां:
वर्त्तमान में तो वैश्वीकरण और उदारीकरण उबकाई ला ही रहा है| भविष्य की इश्वर जाने|
मुक्तक अच्छे हैं|
बढिय मुक्तक प्रेषित किए हैं।आभार।
बेहतरीन मुक्तक पढ़वाने के लिए आभार। दिल को छू गईं ये पंक्तियां-
ये है वैश्वीकरण की पुरवाई
ये उदारीकरण की उबकाई
आप नाहक ही आँख ढपते हैं
ये खुलापन ? ये सभी नंगाई
मन को छूने वाली रचनाएं प्रसारित करने के लिए धन्यवाद .
आप इस कार्य के लिए बधाई के पात्र हैं
जो दिखाए थे, ख़्वाब दो हमको
मौन क्यों हो,ज़वाब दो हमको
हम हैं जनता की मांगते हैं तुमसे
पिछला सारा हिसाब दो हमको...
चंद्रप्रकाश जी,
अब तो जनआक्रोश इस स्तर तक पहुंच ही चुका है कि जनता जवाब मांगने से ज्यादा जवाब देने की फिराक में है। इन दानवों का तो अब अंत आ ही जाना चाहिए। अच्छे मुक्तक।
बहुत सुन्दर रचना है,
---मेरा पृष्ठ
चाँद, बादल और शाम
जो दिखाए थे, ख़्वाब दो हमको
मौन क्यों हो,ज़वाब दो हमको
हम हैं जनता की मांगते हैं तुमसे
पिछला सारा हिसाब दो हमको
अच्छे मुक्तक हैं
बहुत ख़ूब
---
आप भारत का गौरव तिरंगा गणतंत्र दिवस के अवसर पर अपने ब्लॉग पर लगाना अवश्य पसंद करेगे, जाने कैसे?
तकनीक दृष्टा/Tech Prevue
विराट तो अब सुखन सम्राट हो चले हैं
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