मित्रों निदा साहब के ये दोहे दिल में बस गए.
लीजिए आप भी पढ़िए....
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जीवन भर भटका किए, खुली न मन की गाँठ
उसका रास्ता छोड़कर, देखी उसकी बाट
सातों दिन भगवान के, क्या मंगल क्या पीर
जिस दिन सोए देर तक, भूखा रहे फकीर
मुझ जैसा एक आदमी, मेरा ही हमनाम
उल्टा-सीधा वो चले, मुझे करे बदनाम
सीधा-सादा डाकिया, जादू करे महान
एक-ही थैले में भरे, आँसू और मुस्कान
पंछी मानव, फूल,जल, अलग-अलग आकार
माटी का घर एक ही, सारे रिश्तेदार
मैं भी तू भी यात्री, आती-जाती रेल
अपने-अपने गाँव तक, सबका सब से मेल
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मंगलवार, 3 मार्च 2009
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2 टिप्पणियां:
मुझ जैसा एक आदमी, मेरा ही हमनाम
उल्टा-सीधा वो चले, मुझे करे बदनाम
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बहुत सुन्दर! मेरे ही चोले में रहता है वह!
हर दोहे के रंग जुदा -जुदा हैं
निदा के इन दोहों पर हम भी फ़िदा हैं
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