मंगलवार, 27 अगस्त 2013


सामयिक
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'अपराध' के मुद्दे पर 'अपराधीन' क्यों हैं हम ? 


डॉ.चन्द्रकुमार जैन 


धर्म,ध्यान और संस्कृति की धन्य भूमि भारत में शायद ये बहुत दुखद और त्रासद दौर ही कहा जायेगा कि इन दिनों लगातार मूल्यों के विघटन व नैतिक पतन की ख़बरें प्रकाश में आ रही हैं। लोग शर्मोहया को ताक पर रखकर कहीं भी, कभी भी, कुछ भी करने पर आमादा दिख रहे हैं . अपराध के नए-नए तरीके और आतंक व दहशत पैदा करने के निराले अंदाज़ सामने आने लगे हैं .लिहाजा, याद रहे कि इन हालातों पर अगर हम लगातार खामोश रहे तो चिंता से कहीं अधिक चिंतन और मज़बूत पहल की गुहार लगाता हमारा मौजूदा वक्त हमें कभी माफ़ नहीं करेगा . 

ताज़ा उदाहरण देखिये - श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का दिन। तमाम सोसायटी, मुहल्ले और मंदिरों में बच्चे कृष्ण और राधा के रूप में सजकर धूम मचाते रहे .दूसरों के द्वारा उन्हें दुलारे जाते देख उनके माता-पिता खूब प्रसन्न हुए .लेकिन,गाजीपुर की रहने वाली सुनीता और उनके पति सुनील इनमें शामिल नहीं हो सके क्योंकि राजधानी के नामचीन अस्पतालों के एक भी डाक्टर का दिल उनकी 26 दिन की बीमार बच्ची पर नहीं पसीजा।

सात घंटे तक अस्पतालों के चक्कर लगाने के बाद बच्ची ने एक बड़े अस्पताल पहुंचकर मां की गोद में ही दम तोड़ दिया। बच्ची पर रहम न खाने वालों की बेदर्दी ने ऐन जन्माष्टमी के मौके पर उनकी खुशियां छीन लीं। घंटों एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल में बच्ची को भर्ती करने के लिए भटकते रहे परिजन।  कुल मिलाकर हर अस्पताल ने दिखाई इलाज शुरू करने में विवशता,दिया टका-सा जवाब। संवेदनहीनता की हदें पार कीं, कोई डॉक्टर अपनी जिम्मेदारी मानने को तैयार नहीं हुआ।

दूसरा दृश्य - सराय रोहिल्ला थाना इलाके में स्कूल से पढ़कर घर लौट रही एक छह साल बच्ची से दुष्कर्म की कोशिश की गई। बच्ची के शोर मचाने पर लोगों ने आरोपी को पकड़ लिया। जमकर पिटाई करने के बाद उसे पुलिस के हवाले कर दिया गया। स्कूल से घर लौटते समय बच्ची को पड़ोस का एक युवक बहला-फुसला कर निर्माणाधीन इमारत में ले गया और उससे दुष्कर्म की कोशिश करने लगा। लड़की के शोर मचाने पर पड़ोसी एक महिला की नजर युवक पर पड़ गई। हालांकि इसके बाद आरोपी युवक लड़की को मौके पर छोड़कर फरार हो गया। इस बात की जानकारी जब लड़की के परिजनों को हुई तब उन्होंने पीछा कर युवक को दबोच लिया और आसपास के अन्य लोगों के साथ मिलकर युवक की धुनाई कर दी। बाद में पुलिस को सौंप दिया।

दृश्य तीन  -लीजिये एक और घटना पर गौर कीजिए जो हमारे सभी कहे जाने वाले समाज के माथे पर कलंक जैसा है  - सरूरपुर थाना क्षेत्र के एक गांव की छात्रा के साथ चार युवकों द्वारा सामूहिक दुष्कर्म करने का मामला सामने आया है। कालेज जा रही छात्रा को कार सवार चार युवकों ने तमंचे के बल पर अगवा कर दुष्कर्म किया और फरार हो गए। सोमवार सुबह वह कालेज जाने के लिए घर से रवाना हुई। वह गांव से कुछ ही दूर गई थी कि इसी बीच कार सवार चार युवक वहां पहुंचे और तमंचे के बल पर अगवा कर उसे बाडम के जंगल में ले जाकर ईख के खेत में उससे दुष्कर्म किया। इसके बाद छात्रा को वहीं छोड़कर आरोपी कार से फरार हो गए।

दृश्य चार -  हद तो ये है कि एक अन्य मामले में छह साल की बच्ची से रेप की कोशिश के आरोप में एक अधेड़ को गिरफ्तार किया गया है। घटना सोमवार शाम बिंदापुर इलाके में हुई। बच्ची घर के नजदीक खेल रही थी। तभी आरोपी उसे बहला फुसलाकर एक मंदिर के नजदीक ले गया जहां उसने बच्ची के साथ गलत काम करने का प्रयास किया। वहां से राहगीर को गुजरते देख आरोपी ने बच्ची को छोड़ दिया था। घर जाकर बच्ची ने आरोपी की करतूत बता दी।

इधर प्रेम में पागलपन की हदें पार करते हुए पटना के एक छात्र ने मंगलवार को इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बीटेक कर रही छात्रा को सरेराह जिंदा जलाने का प्रयास किया। बुरी तरह झुलसी छात्रा को अस्पताल में दाखिल कराया गया है। घटनास्थल से छात्र को गिरफ्तार कर लिया गया। दिनदहाड़े हुई इस घटना से इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राओं में उबाल है। छात्रा स्कूटी से क्लास करने निकली थी। वहां से वापस आते वक्त एक तिराहे पर पवन विहार कालोनी के पास छात्र  को देखते ही आरोपी छात्र ने पेट्रोल में भिगो कर रखी अपनी टी-शर्ट में आग लगायी और उस पर फेंक दिया। पीठ पर लटके बैग के साथ छात्र के कपड़े में भी आग लग गयी और वह स्कूटी समेत गिर गयी। बावजूद इसके वह उठी और चीखते-चिल्लाते हुए विश्वविद्यालय की ओर भागी।

विचारणीय है कि हमारे रहनुमाओं ने कम से कम ऐसा तो कभी सोचा ही नहीं होगा कि ज्ञान-विज्ञान की असीम प्रगति वाली इक्कीसवीं सदी के स्वतन्त्र भारत में भी इंसानियत ऐसे खतरनाक मोड़ पर पहुँच जायेगी। फिर  भी, तरक्की और तालीम की तमाम सहूलियतों के बावजूद  कोई न कोई कमी ज़रूर रह गई है कि मानव विवेक को भ्रष्ट होने का मौका बरबस मिल रहा है . हम आखिर कब तक गंभीर से गंभीर अपराध को महज़ संकट या साधारण सी समस्या मानकर नज़रंदाज़ करते रहेंगे ? ह्त्या, बलात्कार, सामूहिक दुष्कर्म, यौन उत्पीडन, बाल विवाह, भ्रूण ह्त्या, घरेलू हिंसा, नशीली दवाओं का अवैध व्यापार, अवैध हथियारों पर मिलकियत की जिद, वन्य प्राणियों का शिकार, जंगलों का विनाश , साइबर अपराध, भष्टाचार, कर चोरी, विदेशी प्रवासियों के विरुद्ध अपराध जैसे मामलों को 'सब चलता है' की तर्ज़ पर लेने की आदत से बाज़ हम क्यों नहीं आते ?

एकबारगी प्रतीत होता है कि भष्टाचार के अनगिन रूप ,पारिवारिक विश्वास और संबंधों में प्रतिबद्धता का अभाव और युवाओं में व्याप्त बहुस्तरीय आक्रोश व असंतोष के अलावा रातों रात अमीर बनने के सपने शायद बढ़ते अपराध के बड़े कारण हैं। हर व्यक्ति यदि अपने स्तर पर सहयोग के लिए समझदार हस्तक्षेप के लिए तैयार हो जाये तो तय मानिए कि 'अपराध' को लेकर हमारी 'अपराधीनता' से कुछ हद तक ही सही, छुटकारे का पथ प्रशस्त हो सकता है। इसके लिए सबसे पहले गलत को गलत कहने का साहस चाहिए,क्योंकि जो गलत को गलत नहीं कहते वो गलत को सही नहीं करते !


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