शुक्रवार, 10 अप्रैल 2009

दोहे रहीम के...बातें पते की.


रहिमन वे नर मर चुके, जो कहुं मांगन जाहिं।
उनते पहिले वे मुए, जिन मुख निकसत नाहिं।।
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रहिमन यहि संसार में, सब सो मिलिए धाई।
ना जाने केहि रूप में, नारायण मिलि जाई।।
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रहिमन तब तक ठहिरए, मान मान सम्मान।
घटत मान देखिय जबहिं, तुरतहि करिय पयान।।
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जो रहीम उत्तम प्रकृति,का करि सकत कुसंग।
चंदन विष व्यापत नहीं, लपटे रहत भुजंग।।
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रविवार, 5 अप्रैल 2009

माँ...!


सुबह उठते ही
तुलसी को पानी
देती हुई माँ

सड़क कूटती हुई
सिलाई मशीन
चलाती हुई माँ

आधा पेट खाकर
बेटी के लिए
दहेज़ जोड़ती हुई माँ

शराबी पति के
पाँव दबाती हुई माँ
अभावों के असंख्य सैनिकों से
लड़ती हुई
बच्चे को स्कूल भेज रही है माँ !
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श्री जितेन्द्र चौहान की कविता साभार

शनिवार, 4 अप्रैल 2009

अंदाज़ आज का...!


जिन्हें शक हो वो करें और ख़ुदाओं की तलाश

हम तो इंसान को दुनिया का ख़ुदा कहते हैं

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फ़िराक़ गोरखपुरी

शुक्रवार, 3 अप्रैल 2009

अंदाज़े बयां...हर दिन नया.


न हुआ, पर न हुआ 'मीर' का अंदाज़ नसीब
'ज़ौक़' यारों ने बहुत ज़ोर ग़ज़ल में मारा
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तूती-ए-हिंद मीर तकी 'मीर'

गुरुवार, 2 अप्रैल 2009

अंदाज़े बयां...हर दिन नया.


ढूढता फिरता हूँ ऐ 'इक़बाल' अपने आप को
आप ही गोया मुसाफिर आप ही मंज़िल हूँ मैं
******************* अल्लामा इक़बाल.