न हुआ, पर न हुआ 'मीर' का अंदाज़ नसीब
'ज़ौक़' यारों ने बहुत ज़ोर ग़ज़ल में मारा
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तूती-ए-हिंद मीर तकी 'मीर'
'ज़ौक़' यारों ने बहुत ज़ोर ग़ज़ल में मारा
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तूती-ए-हिंद मीर तकी 'मीर'
और यह मसि कागद ! न मसि न कागद,फिर भी मसि कागद! तो ये है मेरी एक नई कोशिश! मसि-कागद वाले लिख-लिख कर थक गए पर निर्गुनिया बाबा कबीर की साखी की सीख का बयान पूरा न कर सके. फिर भी हर कोशिश हर पहल का अपना महत्त्व है. इस चिट्ठे के ज़रिए कुछ अपने और ज्यादा उन कलमकारों के सुभाषित और मर्मस्पर्शी विचार आप सब से साझा करना चाहता हूँ जिनके लिए मसि कागद वास्तव में सृजन और जीवन का पर्याय बन गया. इतना ही। बात स्वयं बोलेगी !
3 टिप्पणियां:
फिराक गोरखपुरी का डाक-टिकट अच्छा लगा।
भाई चन्द्र कुमार जैन बधाई स्वीकार करें।
आदरणीय डाक्टर साहब,
त्रुटि वश फोटो फिराक़ साहब का
लग गया था.....आभार आपका.
दरअसल उनका नाम मीर के अग्रणी
अनुवादकों में शुमार है.
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डॉ.चन्द्रकुमार जैन
क्या बात है!
रेख्ती के तुम्हीं उस्ताद नहीं हो ग़ालिब
कहते है अगले ज़माने में कोई मीर भी था
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