जिन्हें शक हो वो करें और ख़ुदाओं की तलाश
हम तो इंसान को दुनिया का ख़ुदा कहते हैं
****************************************
फ़िराक़ गोरखपुरी
और यह मसि कागद ! न मसि न कागद,फिर भी मसि कागद! तो ये है मेरी एक नई कोशिश! मसि-कागद वाले लिख-लिख कर थक गए पर निर्गुनिया बाबा कबीर की साखी की सीख का बयान पूरा न कर सके. फिर भी हर कोशिश हर पहल का अपना महत्त्व है. इस चिट्ठे के ज़रिए कुछ अपने और ज्यादा उन कलमकारों के सुभाषित और मर्मस्पर्शी विचार आप सब से साझा करना चाहता हूँ जिनके लिए मसि कागद वास्तव में सृजन और जीवन का पर्याय बन गया. इतना ही। बात स्वयं बोलेगी !
1 टिप्पणी:
बहुत खूब!
एक टिप्पणी भेजें