सुबह उठते ही
तुलसी को पानी
देती हुई माँ
सड़क कूटती हुई
सिलाई मशीन
चलाती हुई माँ
आधा पेट खाकर
बेटी के लिए
दहेज़ जोड़ती हुई माँ
शराबी पति के
पाँव दबाती हुई माँ
अभावों के असंख्य सैनिकों से
लड़ती हुई
बच्चे को स्कूल भेज रही है माँ !
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श्री जितेन्द्र चौहान की कविता साभार
तुलसी को पानी
देती हुई माँ
सड़क कूटती हुई
सिलाई मशीन
चलाती हुई माँ
आधा पेट खाकर
बेटी के लिए
दहेज़ जोड़ती हुई माँ
शराबी पति के
पाँव दबाती हुई माँ
अभावों के असंख्य सैनिकों से
लड़ती हुई
बच्चे को स्कूल भेज रही है माँ !
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श्री जितेन्द्र चौहान की कविता साभार
5 टिप्पणियां:
ओह! इस चरित्र से बहुत प्रभावित हूं। यह (मां) जिस प्रकार से काम करती है, उससे सारी मोटिवेशनल थ्योरियां फेल हो जाती हैं।
sach kintu dukhad!
बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण रचना! क्या
कहना!आप का ब्लाग बहुत अच्छा लगा।
मैं अपने तीनों ब्लाग पर हर रविवार को
ग़ज़ल,गीत डालता हूँ,जरूर देखें।मुझे पूरा यकीन
है कि आप को ये पसंद आयेंगे।
mere paas shabd kam pad rahen hai tippani karne ke liye.. bahut sundar likha hai maa pe
बहुत अच्छी कविता है. परन्तु यथार्थ का इकतरफा चित्रण
कुछ अखरता है. वही मां बेटी को बर्तन मलने भेज कर बेटे
को स्कूल भी भेजती है.
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